क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग, दोनों में अपनी विशेषताएँ हैं, लेकिन इनमें क्या अंतर है? अगर आप क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने या ट्रेड करने की सोच रहे हैं, तो आपको दोनों के बीच के अंतर को समझना जरूरी है। इस ब्लॉग में हम इन्हीं प्रमुख अंतर को समझने की कोशिश करेंगे।

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ट्रेडिंग क्या है?

जब भी हम ट्रेडिंग की बात करते हैं, तो सबसे पहले स्टॉक मार्केट का ख्याल आता है। हालाँकि, क्रिप्टोकरेंसी ने अपने तेज़ विकास से ट्रेडिंग के इस विचार को बदल दिया है। ट्रेडिंग का मतलब होता है वस्तुओं और सेवाओं को खरीदना और बेचना, चाहे वह सामान हो या फिर पैसों के बदले कोई दूसरी चीज। यही ट्रेडिंग का मूल रूप है।

स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग का मतलब है स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनियों के शेयरों को खरीदना और बेचना, जिससे मुनाफा कमाया जा सके। दूसरी ओर, क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग का मतलब है एक्सचेंज के माध्यम से डिजिटल मुद्राओं को खरीदना और बेचना।

ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग में अंतर

कभी-कभी लोग ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग के बीच अंतर को समझने में भ्रमित हो जाते हैं। आइए हम इसे विस्तार से समझते हैं।

ट्रेडिंग

ट्रेडिंग में, लोग शॉर्ट टर्म के लिए मुद्रा खरीदते और बेचते हैं। इसमें किसी मुद्रा को थोड़े समय के लिए रखने के बाद लाभ के लिए बेचा जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के ट्रेडर्स होते हैं:

  1. स्कल्पर्स: ये लोग दिन में कई बार मुद्रा खरीदते और बेचते हैं, ताकि हर छोटी मूवमेंट से मुनाफा कमा सकें।
  2. डे ट्रेडर्स: ये लोग एक दिन में कई बार ट्रेड करते हैं।
  3. स्विंग ट्रेडर्स: ये लोग शॉर्ट टर्म प्राइस मूवमेंट का फायदा उठाने के लिए कई दिनों या हफ्तों तक मुद्रा को होल्ड करते हैं।
  4. मॉमेंटम ट्रेडर्स: ये लोग प्राइस मूवमेंट के अनुसार अपनी ट्रेडिंग करते हैं।

इन्वेस्टिंग

इन्वेस्टिंग में, लोग दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। इसमें लोग वर्षों तक मुद्रा को होल्ड करते हैं, ताकि उसका मूल्य समय के साथ बढ़े और वे मुनाफा कमा सकें। इसमें निवेशकों को न तो कोई एक्सपर्ट तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है और न ही उन्हें बार-बार ट्रेडिंग करने की आवश्यकता होती है।

ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग के बीच के 5 प्रमुख अंतर

आइए अब हम इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग के बीच पांच प्रमुख अंतर को समझते हैं:

1. इन्वेस्टमेंट पीरियड

  • इन्वेस्टिंग: इसमें लंबी अवधि के लिए मुद्रा को होल्ड किया जाता है, जो स्टॉक की कीमतों में उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होता।
  • ट्रेडिंग: इसमें शॉर्ट टर्म प्राइस मूवमेंट पर ध्यान दिया जाता है और ट्रेडर्स घंटों या दिनों में मुद्रा खरीदते और बेचते हैं।

2. हिट रेट और फ्रीक्वेंसी

  • इन्वेस्टिंग: निवेशकों का ट्रेडिंग फ्रीक्वेंसी कम होता है, क्योंकि वे लंबे समय तक मुद्रा को होल्ड करते हैं।
  • ट्रेडिंग: ट्रेडर्स का ट्रेडिंग फ्रीक्वेंसी उच्च होता है, क्योंकि वे बाजार के अवसरों का जल्दी फायदा उठाते हैं।

3. रिस्क फैक्टर्स

  • इन्वेस्टिंग: इन्वेस्टिंग में रिस्क कम होता है, क्योंकि इसमें मुद्रा लंबे समय तक होल्ड की जाती है।
  • ट्रेडिंग: ट्रेडिंग में रिस्क अधिक होता है, क्योंकि ट्रेडर्स शॉर्ट टर्म प्राइस मूवमेंट से लाभ कमाने के लिए अधिक जोखिम लेते हैं।

4. एनालिसिस पैटर्न

  • इन्वेस्टिंग: निवेशक दीर्घकालिक मूल्य वृद्धि पर ध्यान देते हैं।
  • ट्रेडिंग: ट्रेडर्स तकनीकी विश्लेषण करते हैं, जिसमें पिछले डेटा के आधार पर भविष्य की प्राइस मूवमेंट की भविष्यवाणी की जाती है।

5. प्रॉफिट कांसेप्ट

  • इन्वेस्टिंग: निवेशक मूल्य वृद्धि, डिविडेंड्स, और हॉट फोर्क्स के जरिए मुनाफा कमाते हैं।
  • ट्रेडिंग: ट्रेडर्स प्राइस एप्रिसिएशन के जरिए मुनाफा कमाते हैं, यानी वे मुद्रा की कीमत बढ़ने पर उसे बेचते हैं।

निष्कर्ष

क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग दोनों में ही लाभ कमाने के मौके हैं, लेकिन इन दोनों के बीच रणनीतियाँ और दृष्टिकोण अलग होते हैं। यदि आप लंबी अवधि के लिए क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करना चाहते हैं, तो आपको इसके संभावित मूल्य वृद्धि पर ध्यान देना होगा। वहीं, अगर आप शॉर्ट टर्म में मुनाफा कमाने के इच्छुक हैं, तो ट्रेडिंग आपके लिए उपयुक्त हो सकती है।

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Last Update: December 9, 2024