जब स्टॉक मार्केट में प्रॉफिट कमाने की बात आती है, तो इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स का नाम जरूर लिया जाता है। लेकिन अक्सर यह कन्फ्यूजन रहता है कि इन्वेस्टर और ट्रेडर एक ही होते हैं या अलग-अलग। इनके दो नाम क्यों होते हैं? क्या इनकी रणनीतियां और काम करने का तरीका एक जैसा होता है? इस कन्फ्यूजन को आज हम पूरी तरह से दूर करेंगे।

इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग में अंतर

इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग दोनों ही तरीके हैं जिनके द्वारा स्टॉक मार्केट में प्रॉफिट कमाया जा सकता है। लेकिन इनमें काफी अंतर होता है।

  • ट्रेडिंग: ट्रेडिंग में स्टॉक्स को बहुत ही कम समय के लिए होल्ड किया जाता है। यह समय एक हफ्ते से लेकर कुछ दिन या एक दिन तक भी हो सकता है। ट्रेडर्स शॉर्ट-टर्म में हाई प्रॉफिट की तलाश करते हैं और मार्केट के राइजिंग और फॉलिंग दोनों ट्रेंड्स में छोटे-छोटे प्रॉफिट्स प्राप्त करना पसंद करते हैं।
  • इन्वेस्टिंग: इन्वेस्टिंग में स्टॉक्स को लांग-टर्म के लिए होल्ड किया जाता है। इन्वेस्टर का उद्देश्य कुछ सालों तक स्टॉक्स को होल्ड करना होता है, ताकि वह कंपाउंडिंग इंटरेस्ट और डिविडेंड के माध्यम से ज्यादा रिटर्न प्राप्त कर सके।

कैपिटल ग्रोथ पर फर्क

  • ट्रेडिंग में, ट्रेडर्स की नजर मार्केट में स्टॉक्स के प्राइस मूवमेंट पर रहती है। जब प्राइस हाई होता है तो वह स्टॉक्स को सेल कर देते हैं। इसलिए ट्रेडिंग में टाइमिंग का बहुत महत्व है।
  • इन्वेस्टिंग में, निवेशक क्वालिटी स्टॉक्स को सालों तक होल्ड करते हैं और कंपाउंडिंग इंटरेस्ट और डिविडेंड के जरिए कैपिटल ग्रोथ प्राप्त करते हैं।

रिस्क फैक्टर

स्टॉक मार्केट एक रिस्क मार्केट है, चाहे आप इन्वेस्टिंग करें या ट्रेडिंग। लेकिन ट्रेडिंग में रिस्क इन्वेस्टिंग के मुकाबले ज्यादा होता है। क्योंकि शॉर्ट-टर्म में प्राइस कभी भी हाई और कभी भी लो हो सकता है। जबकि इन्वेस्टिंग में रिस्क तो होता है, लेकिन वह कम होता है। अगर लंबे समय तक स्टॉक्स होल्ड किए जाएं तो कंपाउंडिंग इंटरेस्ट और डिविडेंड से मिलने वाले रिटर्न्स ज्यादा हो सकते हैं।

वर्किंग स्टाइल

ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स की वर्किंग स्टाइल भी अलग होती है।

  • ट्रेडर्स को वैन डे गेम खेलना पसंद होता है, जबकि इन्वेस्टर्स को टेस्ट मैच खेलना पसंद होता है।
  • ट्रेडर्स को क्विक रिजल्ट्स आकर्षित करते हैं, जबकि इन्वेस्टर्स को स्लो और स्टडी का तरीका अच्छा लगता है।
  • ट्रेडर्स बाजार के ट्रेंड्स को समझकर जल्दी-जल्दी प्रॉफिट्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि इन्वेस्टर्स स्टॉक्स को एनालाइज करके बेहतर स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना पसंद करते हैं।
  • ट्रेडर्स का फोकस शॉर्ट-टर्म प्रॉफिट्स पर होता है, जबकि इन्वेस्टर्स लंबे समय तक स्टॉक्स को होल्ड करते हैं और तब प्रॉफिट्स प्राप्त करते हैं जब स्टॉक्स अपने पोटेंशियल तक पहुंच जाते हैं।

कौन ज्यादा स्मार्ट है?

यह सवाल बहुत आम है कि ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स में से कौन ज्यादा स्मार्ट है और किसे ज्यादा प्रॉफिट होता है। इस सवाल का सीधा उत्तर यह है कि दोनों का तरीका अलग होता है, और दोनों के पास अपनी सफलता का तरीका होता है। अगर किसी ने अपना लक्ष्य, यानी डिजायरेबल प्रॉफिट, हासिल कर लिया तो वह सफल है।

यह पूरी तरह से आपकी पसंद पर निर्भर करता है कि आपको क्या पसंद है—शॉर्ट-टर्म में छोटे प्रॉफिट्स के जरिए धन कमाना या लंबी अवधि तक स्टॉक्स को होल्ड करके बड़े प्रॉफिट्स प्राप्त करना।

इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स के प्रकार

जैसे इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग की कई शैलियां होती हैं, वैसे ही इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स के भी कई प्रकार होते हैं।

  • इन्वेस्टर्स के प्रकार:
    • इन्वेस्टमेंट कैटेगरी के आधार पर: रिटेल इन्वेस्टर्स, हाई नेटवर्क इंडिविजुअल्स, डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स, और फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स।
    • इन्वेस्टमेंट स्टाइल के आधार पर: वैल्यू इन्वेस्टर्स, ग्रोथ इन्वेस्टर्स, आदि।
    • रिस्क ऐपेटाइट के आधार पर: एग्रेसिव इन्वेस्टर्स, मॉडरेट इन्वेस्टर्स, और कंजरवेटिव इन्वेस्टर्स।
  • ट्रेडर्स के प्रकार:
    • डेट ट्रेडर, स्विंग ट्रेडर, टेक्निकल ट्रेडर, फंडामेंटल ट्रेडर, और लॉन्ग टर्म ट्रेडर।

निष्कर्ष

इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स दोनों के प्रकार अलग होते हैं, और इनकी वर्किंग स्टाइल भी एक-दूसरे से बहुत अलग होती है। आपको अपने लिए सबसे सही तरीका चुनना चाहिए ताकि आप अपना डिजायरेबल प्रॉफिट जल्दी से पा सकें।

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Last Update: December 9, 2024