Derivatives Introduction
डेरिवेटिव से ऐसे कांट्रैक्ट्स होते हैं जिन्हें अपनी वैल्यू किसी अंडरलाइन एसेट से मिलती है और ये अंडरलाइन एसेट स्टॉक्स, कमोडिटीज, करेंसी, पेट्रोलियम, गोल्ड, इंडस्ट्रीज, एक्सचेंज रेट्स या इंटरेस्ट रेट्स में से कोई भी हो सकता है। डेरिवेटिव ट्रेडिंग में स्टॉक मार्केट में फाइनेंशियल कांट्रैक्ट्स को खरीदना और बेचना शामिल होता है। डेरिवेटिव्स में आप एक अंडरलाइन एसिड का फ्यूचर प्राइस मूवमेंट प्रिडिक्ट करके प्रॉफिट बना सकते हैं और फ्यूचर एंड ऑप्शन ऐसी ही दो डेरिवेटिव है जो स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं, इसलिए इनके बारे में आपको अच्छे से जान लेना चाहिए।
Futures and Options (F&O)
तो चलिए अब फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस यानी एफ एन ओ के बारे में डिटेल में जानते हैं। इंडियन स्टॉक एक्सचेंज में फनो इयर 2000 में लॉन्च हुआ और उसके बाद इन स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड किया जाने लगा। आज 100 से भी ज्यादा सिक्योरिटी में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस में इन्वेस्ट किया जा सकता है जो वाकई में एक अच्छी बात है। एफ एंड ओ को इक्विटी ट्रेड की मिस्टीरियस कैसन भी कहा जा सकता है जिनका नेचर काफी हद तक सिमिलर है लेकिन है तो यह दो डिफरेंट कांट्रैक्ट्स, इसलिए इनके नेचर में थोड़े फर्क भी है। अंतर भी है और इसी बात पर पहले पता करते हैं फ्यूचर्स का नेचर।
Futures Nature
इस तरह की डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट में एक बायर या सेलर एक पार्टिकुलर एसिड को एक फ्यूचर अपडेट पर एक स्पेसिफिक प्राइस में खरीदने या बेचने के लिए एग्री करता है। चलिए इसे एक एग्जांपल से समझते हैं। मान लीजिए की आपने कंपनी एबीसी के 100 शेयर्स को एक स्पेसिफिक डेट पर ₹50 में खरीदने का एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदा है। अब कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी पर आपको वो शेयर्स ₹50 में ही मिलेंगे भले उनकी करंट प्राइस कुछ भी हो। अगर उसे समय वो शेयर्स की प्राइस ₹60 रहती है तो आपको तो शेयर ₹50 में मिल जाएगा। तो आपको ₹1000 का नेट प्रॉफिट मिलेगा। लेकिन अगर उसे टाइम शेयर प्राइस ₹40 हो गया तो भी आपको तो शेयर्स 50 के हिसाब से ही मिलेंगे। यानी आपको ₹1000 का लॉस होगा क्योंकि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में आपने फ्यूचर की जिस डेट पर शेयर्स खरीदने को एग्री किया था और जिस स्पेसिफिक प्राइस पर एग्री किया था आपको वही मानना होगा क्योंकि आपने कॉन्ट्रैक्ट जो साइन किया है।
इसलिए फ्यूचर से डेरिवेटिव्स को करते समय आपके पास एक्सपीरियंस और करेक्ट प्रिडिक्शन सेंस होना बहुत जरूरी हो जाता है ताकि आपको लॉस होने के बहुत ही कम रह। लेकिन फ्यूचर किस तरीके से लॉस को कम कर सकते हैं, तो देखिए प्राइस फ्लकचुएशंस के रिस्क से बचने में फ्यूचर्स काफी हेल्पफुल साबित होते हैं। क्योंकि अगर एक कंट्री ऑयल इंपोर्ट करना चाहती है तो वो ऑयल फ्यूचर्स खरीद कर खुद को फ्यूचर में बढ़ाने वाले प्राइस से बचा लेगी। इसी तरह फार्मर्स भी अपनी प्रोडक्ट के लिए फ्यूचर्स खरीद सकते हैं ताकि फ्यूचर में जब वह अपनी फसल बेचने को तैयार हो तो उन्हें प्राइस में आई गिरावट से लॉस ना उठाना पड़ेगा। यानी फ्यूचर्स की ये कंडीशन की फ्यूचर की एक फिक्स डेट पर फिक्स प्राइस में डील होकर रहेगी, ये आपको बहुत सारा प्रॉफिट और बहुत सारा लॉस दोनों दिला सकती है। इसलिए बेहतर यही होगा की अच्छा मार्केट सेंस होने पर ही इस तरह के कांट्रैक्ट्स में इंटर हो।
Types of Futures
वैसे क्या फ्यूचर कई टाइप्स के होते हैं? जी हां, फ्यूचर कांट्रैक्ट्स दो तरह के होते हैं—फाइनेंशियल फ्यूचर्स और फिजिकल फ्यूचर्स। फाइनेंशियल फ्यूचर्स में स्टॉक फ्यूचर्स, करेंसी फ्यूचर्स, इंडेक्स फ्यूचर्स और इंटरेस्ट रेट फ्यूचर्स एक्स्ट्रा आते हैं। इसे और क्लीयरली समझने के लिए आपको बता दें की अगर स्टॉक फ्यूचर्स है तो अंडरलाइन एसेट स्टॉक होता है, तो इंडेक्स फ्यूचर में ये एसेट इंडेक्स होता है, जबकि फिजिकल फ्यूचर्स में कमोडिटी फ्यूचर्स, एनर्जी फ्यूचर्स और मेटल फ्यूचर्स एक्स्ट्रा आते हैं।
Options Derivatives
तो ये तो बात हुई फ्यूचर की, अब ऑप्शंस डेरिवेटिव क्या है और ये किस तरफ फ्यूचर से डिफरेंट है, ये जानने का टाइम ए गया है। तो चलिए अब जानते हैं ऑप्शंस के बारे में। ऑप्शंस डेरिवेटिव्स फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट से थोड़े से अलग होते हैं क्योंकि ये बायर या सेलर को ये राइट देते हैं की वो एक पार्टिकुलर एसेट एक डिसाइडेड प्राइस पर फ्यूचर की डेट पर खरीदे या बेचे। लेकिन इसमें फ्यूचर्स की तरह कोई ऑब्लिगेशन या कमिटमेंट नहीं होता है। ये दो टाइप के होते हैं—कॉल ऑप्शंस और पुट ऑप्शंस। कॉल ऑप्शन बायर को एक पार्टिकुलर एस से टेक स्पेसिफिक प्राइस में स्पेसिफिक डेट पर खरीदने का राइट देता है, जबकि पुट ऑप्शन फ्यूचर की डिसाइडेड डेट और प्राइस पर एसेट बेचने का राइट देता है। यानी कॉल खरीद से रिलेटेड है, तो पुट बेचने से।
इनमें कोई ऑब्लिगेशन नहीं होगा, लिए इसे भी एक एग्जांपल से समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए की आपने सर्टेन डेट पर कंपनी एबीसी के 100 शेयर ₹50 पर शेयर के हिसाब से खरीदने के लिए कॉल ऑप्शन खरीदा है। लेकिन कॉन्ट्रैक्ट एंड होने के टाइम शेयर प्राइस ₹40 हो गया है। तो ऐसे में 50 रुपए के हिसाब से शेयर खरीदने से आपको तो लॉस हो जाएगा। इसलिए अब आपका कोई इंटरेस्ट नहीं है इस कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से शेयर खरीदने का। तो आपके पास ये राइट है की आप कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से शेयर ना खरीदे और इसमें आपको ₹1000 का नुकसान होने से बच जाएगा। और जो थोड़ा सा लॉस आपको होगा वो केवल कॉन्ट्रैक्ट में इंटर होते समय दिया जाने वाला प्रीमियम होगा, जो कंपेरटिवली काफी कम होगा।
इसी तरह पुट ऑप्शन को देखे तो अगर आपके पास एबीसी कंपनी के शेयर्स को फ्यूचर डेट पर ₹50 में सेल करने का पुट ऑप्शन है, तो आप ₹50 में ना बेचेंगे यानी ऑप्शन फ्यूचर से थोड़े आसान होते हैं जो थोड़ी रियायत देते हैं।
Major Differences Between Futures and Options
तो जरा फ्यूचर्स के बीच की मेजर डिफरेंस को भी देख लेते हैं। फ्यूचर में ट्रेड कमिटमेंट होता है जिसे स्पेसिफाइड डेट पर पूरा करना जरूरी होता है, जबकि ऑप्शंस में बायर के पास ऐसा कोई कमिटमेंट नहीं होता। फ्यूचर्स होल्डर को स्पेसिफाइड डेट पर ट्रेड करना ही होगा, जबकि ऑप्शंस पे एक्सपायरी डेट तक कई सारे ऑप्शंस मिल जाते हैं। जैसे की एक इंडेक्स ऑप्शन का उसे केवल एक्सपायरी डेट पर ही किया जा सकता है और स्टॉक ऑप्शन का उसे एक्सपायरी डेट तक कभी भी किया जा सकता है। फ्यूचर्स में लिक्विडिटी ऑप्शंस के कंपैरिजन में हाई होती है। प्राइस ड्रॉप की कंडीशन में फ्यूचर्स में आपको कोई फ्रीडम नहीं मिलती, जबकि ऑप्शंस पे आपके पास चॉइस होती है। इसलिए ऑप्शंस लॉस के रिस्क को कम करते हैं।
Conclusion
ये दोनों एक जैसे होकर के भी अलग-अलग होते हैं। तो फॉरेन और डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स, हाई नेक इंडिविजुअल्स, हेड पॉइंट आर्बिट्रेटर और रिटेल इन्वेस्टर्स फिनोमिनल ट्रेड करते हैं। वैसे आपको अपनों के बारे में ये बेसिक चीज तो पता होनी ही चाहिए की हर कॉन्ट्रैक्ट की एक एक्सपायरी डेट होती है। हर कॉन्ट्रैक्ट स्पॉट मार्केट यानी कैश मार्केट में एक अंडरलाइन एसेट को रिप्रेजेंट करता है। ये कांट्रैक्ट्स फिक्स्ड लॉट साइज और उनकी मल्टीप्लेक्स में ट्रेड होते हैं। इंडेक्स फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट मंथली सीरीज में अवेलेबल होते हैं, तो इंडेक्स ऑप्शन वीकली और मंथली एक्सपायरी पर अवेलेबल रहते हैं। स्टॉक फिनो केवल 3 मंथ फ्यूचर एक्सपायरी डेट्स पर अवेलेबल होते हैं, जबकि इंडेक्स कांट्रैक्ट्स पे 5 साल की फ्यूचर एक्सपायरी डेट तक ट्रेड की जा सकती है।
एफ ए नोट ट्रेडिंग के क्या-क्या फायदे हो सकते हैं? तो फेन और ट्रेडिंग का सबसे बड़ा एडवांटेज तो ये होता है की आप बिना किसी एसिड पे इन्वेस्ट किए भी ट्रेड कर सकते हैं। खरीदने की जरूरत नहीं और अपनों के जरिए आप इन असेट्स की प्राइस में होने वाले उतार-चढ़ाव का हिस्सा बन सकते हैं। इसके लिए आपको स्टॉक ब्रोकर को ट्रेड करने के लिए बस एक इनिशियल मार्जिन पे करना होगा। इसका एक और एडवांटेज यह है की इसमें ट्रांजैक्शन कॉस्ट ज्यादा हाई नहीं होती है।
लेकिन इस फेन और ट्रेडिंग के लिए कॉमन मार्केट कौन सा है? तो इसका जवाब है जिन मार्केट में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस प्रिंटिंग बहुत कॉमन है, वो मार्केट कमोडिटी मार्केट हैं। जैसे मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज यानी की एमसीएक्स और नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज लिमिटेड यानी की एनसीडीईएक्स जिनके जरिए आप कमोडिटी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस को ट्रेड कर सकते हैं। लेकिन आपको यह भी पता होना चाहिए की कमोडिटी मार्केट ज्यादा वोलेटाइल होते हैं, इसलिए उनमें कदम तभी रखना चाहिए जब आप रिस्क को हैंडल कर सकते हैं।
और फिर स्टॉक मार्केट में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस ट्रेडिंग एक एवरेज इन्वेस्टर के लिए इतनी भी परिसक नहीं है जितनी कमोडिटी मार्केट में है। इसलिए कमोडिटी मार्केट में इन्वेस्टमेंट के लिए ज्यादा प्रॉपर्टीज की जरूरत होगी। और हान इक्विटी जहां लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को अट्रैक्ट करती है वहीं फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस ऑन ट्रेडर्स के लिए है जो क्विक रिटर्न चाहते हैं और जिनकी रिस्क टोलरेंस हाई होती है।
अगर सोच समझकर चला जाए तो इसके जरिए वोलेटाइल मार्केट से खुद को प्रोटेक्ट किया जा सकता है और प्रॉफिट जेन भी किया जा सकता है। बहुत से एक्सपोर्ट्स के अकॉर्डिंग बेगिनेर को पहले इक्विटी कैश ग्रेडिंग सेगमेंट से शुरू करना चाहिए और फिर फ्यूचर एंड ऑप्शन सेगमेंट की तरफ मूव करना चाहिए।
Conclusion
और अगर इतना सब कुछ जान लेने के बाद आप यह जानना चाहते हैं की फिनो में इन्वेस्ट करने के लिए क्या रिटायरमेंट होगी तो यह भी जान लेते हैं। इन डेरिवेटिव्स में ट्रेड करने के लिए आपको एक फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस अकाउंट ओपन करना होगा और अपने अकाउंट में सफिशिएंट अमाउंट रखना होगा ताकि ट्रेड आसानी से हो सके। इसके बाद आप ऑनलाइन या ऑफलाइन ट्रेड कर सकेंगे।
और अब जब आप डेरिवेटिव ट्रेडिंग के लिए तैयार हो रहे हैं तो आपको बैंक के बारे में भी पता होना चाहिए। यह फिनो बहन बहुत ज्यादा स्पैक्यूलेशन से प्रीवेंट करता है। स्टॉक एक्सचेंज सर्टेन टाइम्स पर अपनों बन लगाते हैं। इस ड्यूरेशन में ट्रेडर्स ऐसे स्टॉक में फ्रेश पोजीशंस ओपन नहीं कर सकते जो फिनो बन में आते हैं, वरना उन पर पेनल्टी लग सकती है। इसलिए आपको ऐसे स्टॉक से बचाना चाहिए जो फिनो पैन में आते हैं। और इसी के साथ अब आपके पास फिनो के बारे में इतनी सारी जानकारियां ए गई है की आप इसपे ट्रेड करने के बारे में सोच सकते हैं। लेकिन फिर भी हम तो यही कहेंगे की इन डेरिवेटिव्स के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानिए, सीखिए, समझिए और बिना जल्दबाजी की ये धीरे-धीरे इनमें एंट्री लीजिए ताकि आपको कोई जोर का झटका ना लगे। और ये ट्रेडिंग आपके लिए प्रॉफिट टेबल साबित हो सके।