What is Futures Trading?
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What is Futures Trading?

Introduction

यह तो आप जानते ही हैं कि स्टॉक मार्केट से बहुत पैसा कमाया जा सकता है और स्टॉक मार्केट पर बेस्ड हमारे पिछले वीडियोस के जरिए तो आप यह भी समझने लगे हैं कि इस मार्केट में पैसा कमाना और गवाना दोनों ही पॉसिबल है हां लेकिन सही स्ट्रेटेजी और पेशेंस की बदौलत प्रॉफिट गेन किया जा सकता है और बिना नॉलेज ज्यादा कमा लेने की चाहत में सब कुछ खोया भी जा सकता है तो इसी स्टॉक मार्केट के बारे में आपने यह भी जरूर जाना होगा कि में सिर्फ शेयर्स खरीद बेचकर ही फायदा नहीं लिया जा सकता पैसा कमाने और बढ़ाने के और भी बहुत से तरीके हैं जैसे कि ऑप्शन ट्रेडिंग इस पर बेस्ड वीडियो अगर आपने नहीं देखा है तो जरूर देखिएगा आपको बहुत फायदा होगा और आज हम जिस ट्रेडिंग के बारे में बात करने वाले हैं वह भी ऑप्शन ट्रेडिंग की तरह बहुत ही स्पेशल है थोड़ी सी कॉम्प्लेक्शन कमाने में मदद करने वाली ट्रेडिंग है क्योंकि इसका नाम है फ्यूचर्स ट्रेडिंग जो ऑप्शन ट्रेडिंग की की तरह एक डेरिवेटिव ट्रेडिंग है डेरिवेटिव ट्रेडिंग में आप कोई भी चीज खरीदे बिना उसकी असली कीमत पर दांव लगाते हैं यह चीज अंडरलाइन एसेट कहलाती है और यह शेयर करेंसीज जैसी चीज हो सकती है अगर आपका अनुमान सही होता है तो आप प्रॉफिट गेन करते हैं और अगर अनुमान गलत हो जाता है तो पैसा डूब सकता है शेयर खरीदना कंपनी का एक हिस्सा खरीदना होता है जबकि डेरिवेटिव में शेयर खरीदे बिना सिर्फ उस शेयर की कीमत पर दाव लगाए या जाता है यह डेरिवेटिव ट्रेडिंग मेनली दो टाइप्स की है ऑप्शन ट्रेडिंग और फ्यूचर्स ट्रेडिंग और आज हम डिटेल में जानने वाले हैं फ्यूचर्स ट्रेडिंग को जिसमें आपको पता चलेगा कि फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या होती है यह ऑप्शन ट्रेडिंग से किस तरह अलग है स्टॉक ट्रेडिंग और फ्यूचर्स ट्रेडिंग में क्या डिफरेंस होता है कौन से इन्वेस्टर्स के लिए यह ट्रेडिंग सूटेबल होती है इससे कौन से फायदे होते हैं और इस तरह की ट्रेडिंग में कौन से रिस्क हो सकते हैं |

What is Futures Trading?

अब जानते हैं फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बारे में थोड़ा डिटेल में तो फ्यूचर्स एक तरह का फाइनेंशियल कांट्रैक्ट होता है जिसमें स्टॉक गोल्ड और ऑयल जैसे एक अंडरलाइन एसेट के फ्यूचर प्राइस पर बैट लगाई जाती है बिना उसे खरीदे इसमें आप यह तय करेंगे कि आगे आने वाले समय में एक फिक्स्ड डेट पर एक फिक्स्ड प्राइस पर आप उस एसेट को खरीदेंगे या फिर उसे बेचेंगे तो जिस प्राइस पर आप उस एसेट को खरीदने या बेचने का वादा करते हैं उसे स्ट्राइक प्राइस कहा जाता है और इस वादे के लिए आपको स्मॉल अमाउंट ब्रोकर को देना भी होता है जिसे मार्जिन कहा जाता है यह एक तरह का सिक्योरिटी डिपॉजिट होता है फ्यूचर्स कांट्रैक्ट्स की एक्सपायरी डेट भी होती है जिस पर यह कांट्रैक्ट खत्म होता है और उस दिन आपको वह एसेट खरीदना या बेचना ही पड़ेगा एग्जांपल के लिए अगर आपको लगता है कि अगले महीने सोने की कीमत बढ़ जाएगी तो आप एक फ्यूचर्स कांट्रैक्ट खरीदते हैं जिसका मतलब है कि आप अगले महीने एक फिक्स्ड प्राइस पर सोना खरीदने के लिए सहमत हो गए हैं यहां पर सोना अंडरलाइन एसेट है।

Difference Between Futures Trading and Options Trading

जहां ऑप्शन ट्रेडिंग में आप अंडरलाइन एसेट का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं यानी उसमें यह जरूरी नहीं होता है कि आप उस एसेट को खरीदें या बेचे ही वहीं फ्यूचर्स ट्रेडिंग में आपको उस एसेट को फिक्स्ड टाइम पर फिक्स्ड प्राइस पर खरीदना या बेचना होगा ही आप उससे इंकार नहीं कर सकते इसीलिए तो फ्यूचर्स ट्रेडिंग की तुलना में ऑप्शन ट्रेडिंग को कंपैरेटिव कम रिस्की और ज्यादा फ्लेक्सिबल माना जाता है।

Difference Between Stock Trading and Futures Trading

इसी तरह स्टॉक ट्रेडिंग और फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बीच के डिफरेंस को अगर हम देखें तो यह दोनों ही स्टॉक मार्केट से जुड़े हुए हैं लेकिन फिर भी इनमें काफी अंतर है स्टॉक ट्रेडिंग में आप किसी कंपनी के स्टॉक्स को खरीदकर उसकी हिस्सेदारी खरीदते हैं वहीं फ्यूचर्स ट्रेडिंग में आप एक कांट्रैक्ट खरीदेंगे जिसमें आप फ्यूचर में किसी एसेट की प्राइस पर केवल दांव लगाएंगे स्टॉक ट्रेडिंग में रिस्क कम होता है और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए इसे ज्यादा प्रेफर किया जाता है जबकि फ्यूचर्स कांट्रैक्ट एक्सपायरी डेट के बाद खत्म हो जाएगा और इसमें बहुत ज्यादा रिस्क होता है यानी अगर आपने एक कंपनी के शेयर खरीदे हैं तो आप स्टॉक ट्रेडिंग कर रहे हैं लेकिन अगर आपने कांट्रैक्ट खरीदा है जिसमें आप फ्यूचर में उस कंपनी के शेयर को एक फिक्स्ड टाइम पर एक फिक्स्ड प्राइस पर खरीदने के लिए सहमत हुए हैं तो यह फ्यूचर्स ट्रेडिंग होगी।

Futures Trading in India

फ्यूचर्स ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज पर की जाती है और भारत के दो मेजर स्टॉक एक्सचेंज एनएससी यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बीएससी यानी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज है इन एक्सचेंज के जरिए डिफरेंट टाइप्स के फ्यूचर्स कांट्रैक्ट्स जैसे इंडेक्स फ्यूचर्स और कमोडिटी फ्यूचर्स में ट्रेड किया जाता है यूं तो भारत में फ्यूचर्स ट्रेडिंग कोई भी 18 साल की उम्र वाला पर्सन कर सकता है जिसके पास डीमेट और ट्रेडिंग अकाउंट्स हो लेकिन अपनी रिस्की नेचर की वजह से फ्यूचर्स ट्रेडिंग उन ट्रेडर्स के लिए ही सूटेबल रहता है जो शॉर्ट टर्म में हाई रिस्क लेकर ट्रेडिंग करना पसंद करते हैं साथ ही जिन्हें मार्केट की अच्छी समझ हो और जिनके पास इस ट्रेडिंग के लिए मार्जिन अमाउंट भी अवेलेबल हो।

Types of Futures Trading

फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बारे में यह सब जानने के बाद अब जानते हैं इसके टाइप्स के बारे में तो इसके दो मेन टाइप्स होते हैं इंडेक्स फ्यूचर्स और कमोडिटी फ्यूचर्स इंडेक्स फ्यूचर्स में शेयर बाजार के किसी इंडेक्स के फ्यूचर टाइम के प्राइस पर दांव लगाया जाता है और कमोडिटी फ्यूचर्स में किसी रॉ मटेरियल जैसे सोना चांदी ऑयल या एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स के फ्यूचर प्राइस पर दांव लगाया जाता है इन्हें हम थोड़ा और अच्छे से समझते हैं।

Index Futures

पहले इंडेक्स फ्यूचर्स को जानते हैं जिसके लिए पहले इंडेक्स का मतलब समझना बेहतर होगा तो इंडेक्स कुछ चुनिंदा कंपनीज के शेयर्स का एक ग्रुप होता है जो शेयर मार्केट को रिप्रेजेंट करता है यह मार्केट की परफॉर्मेंस को मेजर करने के लिए यूज किया जाता है इंडेक्स यह बताता है कि मार्केट में ज्यादातर कंपनियां अच्छा कर रही हैं या बुरा अगर इंडेक्स बढ़ रहा हो तो इसका मतलब होता है कि ज्यादा ज्यादातर कंपनीज अच्छी परफॉर्मेंस दे रही हैं और अगर इंडेक्स कम हो रहा है तो कंपनीज की परफॉर्मेंस अच्छी नहीं है निफ्टी 550 और सेंसेक्स दोनों के नाम तो आपने जरूर सुने होंगे यह दोनों इंडेक्स ही हैं निफ्टी 50 में भारत की टॉप 50 कंपनीज के शेयर शामिल हैं और सेंसेक्स में भी 30 बड़ी कंपनियों के शेयर शामिल हैं जो बीएससी पर लिस्टेड टॉप कंपनीज हैं तो जब इन कंपनीज के शेयर्स की प्राइस बढ़ती है तो इंडेक्स का मूल्य भी बढ़ता है और जब इन कंपनीज के शेयर्स की प्राइस घटती है तो इंडेक्स का प्राइस भी घटता है इंडेक्स को जानने के बाद अब बात करें इंडेक्स फ्यूचर की तो ये एक तरह का कांट्रैक्ट होता है जिसमें शेयर मार्केट के इंडेक्स जैसे निफ्टी 50 या सेंसक्स के फ्यूचर टाइम के प्राइस का अनुमान लगाया जाता है उस पर दांव लगाया जाता है यह इस तरह काम करता है कि आप यह अनुमान लगाते हैं कि इंडेक्स का प्राइस या वैल्यू बढ़ेगा या घटेगा उसके अकॉर्डिंग आप एक निश्चित संख्या में इंडेक्स फ्यूचर कांट्रैक्ट को खरीदते हैं या बेचते हैं कांट्रैक्ट में एक फिक्स्ड एक्सपायरी डेट भी होती है एक्सपायरी डेट पर अगर आपका अनुमान सही होता है तो आप प्रॉफिट कमाते हैं वरना आपको लॉस उठाना पड़ता है एग्जांपल के लिए मान लीजिए आप सोचते हैं कि निफ्टी 50 इंडेक्स अगले महीने बढ़ेगा आप निफ्टी 50 के 100 कांट्रैक्ट खरीदते हैं अगर निफ्टी का प्राइस बढ़ता है तो आप फायदे में रहेंगे और अगर प्राइस घटता है तो आपको नुकसान उठाना पड़ेगा इ नेक्स फ्यूचर में आप टॉप कंपनीज के ग्रुप पर यानी इंडेक्स पर दाव लगाएंगे तो ऐसे में अगर मार्केट बढ़ेगा तो आप जीत जाएंगे और अगर मार्केट गिरेगा तो आपको जोर के झटके के साथ हार का सामना करना पड़ेगा इसका इस्तेमाल करके कम टाइम में ज्यादा पैसा कमाने का चांस मिल सकता है और यह इसकी एक खूबी है लेकिन यह हाई रिस्क लिए होता है क्योंकि अनुमान गलत हुआ तो सारा पैसा डूब गया।

Commodity Futures

अब बात करते हैं फ्यूचर ट्रेडिंग के सेकंड टाइप कमोडिटी फ्यूचर्स की जो कि ऐसा कांट्रैक्ट होता है जिसमें आप किसी कच्चे माल जैसे सोना तेल या गेहूं की फ्यूचर टाइम की प्राइस पर दांव लगा सकते हैं आपको पता होना चाहिए कि गोल्ड सिल्वर कॉपर जैसे मेटल्स वीट कॉर्न कॉटन जैसे एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स कैटल और पॉलिटिक जैसे लाइव स्टॉक शुगर रबर जैसे सॉफ्ट्स और ऑयल नेचुरल गैस और कोल कमोडिटी में आते हैं कमोडिटी पर दाव लगाने या इसके बारे में अनुमान लगाने के लिए आप आज एक फिक्स प्राइस पर भविष्य में उस कच्चे माल को खरीदने या बेचने का वादा करते हैं अगर आपका अनुमान सही होता है कि कीमत बढ़ेगी या घटेगी तो आप पैसा कमा सकते हैं लेकिन अगर आपका अनुमान गलत होता है तो आप पैसा खो सकते हैं फॉर एग्जांपल एक पेट्रोल पंप मालिक को लगता है कि अगले महीने पेट्रोल की कीमत बढ़ जाएगी वह आज ज्यादा पेट्रोल स्टॉक नहीं करना चाहता लेकिन आने वाले समय में यानी फ्यूचर में पेट्रोल को कम कीमत पर खरीदना चाहता है तो वह एक फ्यूचर कांट्रैक्ट खरीदता है जिसका मतलब है कि वह अगले महीने एक फिक्स्ड डेट पर एक फिक्स्ड प्राइस पर पेट्रोल खरीदने के लिए सहमत हो गया है अब अगर पेट्रोल की कीमत बढ़ जाती है तो पेट्रोल पंप मालिक ने जो कांट्रैक्ट खरीदा था उसे वह मार्केट प्राइस पर बेचकर प्रॉफिट कमा सकता है और अगर उसका अनुमान या दांव गलत निकला और पेट्रोल की कीमत बढ़ने की बजाय घट गई तो उसे कांट्रैक्ट के अकॉर्डिंग पेट्रोल को उस कीमत पर खरीदना ही होगा जिस पर उसने डील की थी तो भले ही मार्केट प्राइस उससे कम ही क्यों ना हो तो ऐसे में उसे काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।

Conclusion

इस तरह कमोडिटी फ्यूचर्स भी काफी रिस्की होता है क्योंकि कमोडिटी में आने वाली चीजों की कीमतें कई रीजन से बदल सकती हैं जिससे आपका अनुमान गलत हो सकता है इस तरह फ्यूचर्स ट्रेडिंग के दोनों ही टाइप्स अपने साथ हाई रिस्क लेकर चलते हैं और जो ट्रेडर्स कमोडिटी की समझ रखते हैं और उस पर दाव लगाना चाहते हैं उनके लिए कमोडिटी फ्यूचर्स बेहतर ऑप्शन हो सकते हैं और जो ट्रेडर्स पूरे मार्केट में इन्वेस्ट करना चाहते हैं और रिस्क को थोड़ा कम रखना चाहते हैं उनके लिए इंडेक्स फ्यूचर्स बेहतर ऑप्शन माना जाता है और इस तरह अब आप यह जान चुके हैं कि फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या होती है यह किस तरह काम करती है इसके टाइप्स कौन से हैं किनके लिए यह बेस्ट सूटेबल ट्रेडिंग प्रैक्टिस हो सकती है तो उसके अकॉर्डिंग आप डिसीजन लीजिए |

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